सपनों का क्या करो कहाँ तक मरो इनके पीछे कहाँ-कहाँ तक खिंचो इनके खींचे कई बार लगता है लो यह आ गया हाथ में आँख खोलता हूँ तो बदल जाता है दिन रात में !
हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ